बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

सिर्फ़ 1411 बाक़ी… चंद दिनों में याद हो गया ये आँकड़ा.

इन दिनों आप एयरसेल द्वारा चलाए जा रहे अभियान सेव अवर टाइगर्स की मार्मिक फ़िल्म टीवी चैनल्स पर ज़रूर देख रहे होंगे. कैसे एक मासूम शावक घबराया या अपनी मांद में छुपा बैठा अपनी माँ का इंतज़ार कर रहा है. शानदार फ़ोटोग्राफ़ी ,कबीर बेदी के प्रभावी वॉइस ओवर (एड में सुनाई देने वाली आवाज़ ) और नायाब लोकेशन्स से लकदक ये फ़िल्म आख़िर में जब कहती है कि मुल्क में सिर्फ़ 1422 शेर बाक़ी रह गए हैं तो एक लम्हा दर्शक चौंक भी जाता है और चिंतित भी दिखाई देता है.वाक़ई यह एडवरटाइज़िंग का कमाल है कि चंद दिनों में हमें 1422 आँकड़ा मुँहज़बानी ऐसे याद हो गया है जैसे कि यह हमारा मोबाइल नम्बर हो .सामाजिक सरोकार को लेकर ये एक यादगार एड कहा जाएगा.

फ़िल्म में शावक की जगह पर गबरू शेर भी दिखाया जा सकता था लेकिन ये जगज़ाहिर है कि बच्चे किसी एड फ़िल्म में ज़्यादा असर छोड़ते हैं और यहाँ भी वही फ़ार्मूला कारगर हुआ है. साथ ही यह संदेश भी जा रहा है कि कि अब हमें शेर की नई पीढ़ी को पालना पोसना होगा. हाँ चूंकि यह एयरसेल जैसी लोकप्रिय मोबाइल कम्पनी द्वारा प्रायोजित किया गया है तो यह प्रेरणा संदेश भी लाज़मी है कि शेरों को बचाने के लिये ब्लॉग लिखिये,एस.एम.एस.कीजिये…जो दर्शक या ग्राहक पर एक तरह की अप्रत्यक्ष मार्केटिंग भी इस ब्रांड की.

विज्ञापन में रूचि रखने वाले और विद्यार्थी नोट कर सकते हैं कि इस तरह के इश्तेहारों को पब्लिक सर्विस एडवरटाइज़िंग (पीएसए) कहा जाता है. यानी जनहित में जारी किये जाने वाले विज्ञापन. प्रायोजक को सीधे सीधे तो इस तरह के अभियानों से कोई बिक्री लाभ नहीं मिलता लेकिन ब्रांड रिकॉल या उत्पाद की याद अवश्य बनी रहती है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने विज्ञापन ख़र्च में पीएसए के लिये अच्छी ख़ासी राशि का प्रावधान भी करती है. इससे ग्राहक के मन में ब्रांड के लिये एक सहानभूति भी बनती है और जैसा कि मैंने पहले भी लिखा कि ब्रांड रिकॉल भी .

बहरहाल सेव अवर टाइगर्स को इन बरसों में जारी की गई एक अच्छा पब्लिक एडवरटाइज़िंग कैंम्पेन कहना होगा .ध्यान रहे ये फ़िल्म प्रिंट माध्यम में भी जारी हुई है लेकिन शावक को अपने टीवी सैट पर चलते फ़िरते देखने का अपना एक अलग सुख है. यह भी कहना चाहूँगा कि महेन्द्रसिंह धोनी और बाइचंग भूटिया जैसे सेलिब्रैटी का समर्थन इस अभियान को और व्यापक बनाता है .हाँ आपको समय मिले तो सेव अवर टाइगर्स वैबसाइट की सैर ज़रूर करें.

इश्तेहारानामा की पहली पोस्ट को मिला आपका प्यार सर आँखों पर . बहुत सारे विद्यार्थियों और विज्ञापन विधा में रूचि रखने वाले पाठकों ने अपनी जिज्ञासाएं मुझे ईमेल के ज़रिये भेजीं है जिनके जवाब अलग से लिख रहा हूँ.
टाइगर निसंदेह हमारी राष्ट्रीय धरोहर है और हम सब मिलकर ही इसे बचा सकते हैं.
फ़िर मिलते हैं

7 टिप्‍पणियां:

  1. टाइगर निसंदेह हमारी राष्ट्रीय धरोहर है और हम सब मिलकर ही इसे बचा सकते हैं

    -सही संदेश दिया बाकी तो इस्तेहार यहाँ कहाँ पता!!

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  2. शावक की मासूमियत भरी आंखें बहुत कुछ कह जाती है, बनिस्बत धोनी और भूटिया के स्टेटमेंट नुमा अपील से. यही इस बढिया ऎड की यू एस पी है.

    आपका विश्लेषण सटीक और पैना है.

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  3. u r doing a great job sir, by providing information abt the world of advertising,apka ye prayas students k liye bhi acha sabit hoga

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नवाज़िश,करम आपका...आप आए !