रविवार, 31 जनवरी 2010

कविता की तरह दिमाग़ में उपजते हैं विज्ञापन के शीर्षक

इश्तेहारनामा में आपका स्वागत है. इस नये ब्लॉग पर यह मेरी पहली पोस्ट है. पच्चीस बरस से ज़्यादा वक़्त हो गया एडरटाइज़िंग की दुनिया में काम करते हुए.इस बात की ख़ास तसल्ली है कि अंग्रेज़ी प्रभाव वाले इस व्यवसाय में हिन्दी में काम करते हुए अपनी पहचान बना पाया और रोज़ीरोटी भी कमा पाया. इस ब्लॉग को शुरू करने के लिये बहुत सारे मित्रों का इसरार था सो सबसे पहले उन्हें धन्यवाद.

इश्तेहारनाम में दुनिया भर में हो रहे विज्ञापनों की चर्चा करेंगे.हाँ भारत में हो रहे अभियानों की चर्चा तो होगी ही. इस ब्लॉग में हम न केवल जो हो चुका उसके भले/बुरे की बात करेंगे बल्कि विज्ञापन तकनीक और उसमें उपयोग होने वाली रचना प्रक्रिया और भाषावली की जानकारी भी बाँटेंगे.

तो बिसमिल्ला करते हैं शीर्षक से यानी हेडलाइन से. किसी भी विज्ञापन को पढ़ा जाए या नहीं यह अमूमन हेडलाइन से ही तय होता है. विज्ञापन दुनिया के भीष्मपितामह डेविड ओगिल्वी कहते हैं कि 80% लोग शीर्षक से ही तय करते हैं कि यह विज्ञापन पूरा देखा या पढ़ा जाए या नहीं यानी एकतरह से हैडलाइन विज्ञापन (जिसे मैं आगे कहीं कहीं एड भी लिखूंगा) का मुख्यद्वार है.

हैडलाइन को मैं नारा भी कह सकता हूँ ; हाँ बिल्कुल वैसा ही …जीतेगा भई जीतेगा..हाथ का पंजा जीतेगा…तो यह भी एक हैडलाइन ही कही जाएगी. अब यह कहाँ कैसे इस्तेमाल की जाती है और तब वह पंचलाइन,बेसलाइन ,कैचलाइन कैसे हो जाती है यह बात फ़िर कभी.

इस पहली पोस्ट उन्वान है कि कविता की तरह दिमाग़ में उपजते हैं विज्ञापन के शीर्षक…इसे साबित करने के लिये एक प्यारा सा वाक़या. मेरे अज़ीज़ दोस्त (आजकल न जाने कहाँ हैं)दिनेश शाकुल द्वारा सुनाई हुई आपको सुनाता हूँ;यक़ीनन आपको बहुत मज़ा आएगा. दिनेश शाकुल जानी मानी एड-एजेन्सी चैत्रा में थे और उन्होंने चर्चित धारावाहिक चाणक्य में चंद्रगुप्त और राग-दरबारी के रूप्पन का क़िरदार निभाया था. हाँ ये भी बताता दूँ कि वी.आई.पी.ट्रेवलाइट के लोकप्रिय विज्ञापन कल भी आज भी कल भी को दिनेश भाई ने लिखा था. आपको याद होगा इस इश्तेहार में अभिनेता आकाश खुराना रेल्वे स्टेशन पर किसी को विदा करते हुए गले से लगाते हैं और पार्श्व में ये गीत चलता है. ख़ैर! दिनेश भाई भी जब मुम्बई आए तो ख़ासा स्ट्रगल था. किसी बड़ी एड-एजेन्सी में बतौर कॉपी-राइटिंग के साथ फ़्रीलांस काम भी तलाशते रह्ते.दुकानों और शोरूम्स में ताँक-झाँक रहती कि कहीं कोई काम है क्या. एक शाम मुम्बई के कारोबारी इलाक़े कोलाबा से गुज़्रर रहे थे दिनेश भाई और एक लख़नवी टेलर शॉप में फ़र्नीचर का काम होते देखा. पूछा कोई काम हैं क्या ? विज्ञापन आदि का या निमंत्रण पत्र का मज़मून बनाना हो तो बताएँ.टेलर मास्टर बोले हाँ हमारी दुकान के लिये एक स्लोगन चाहिये.दिनेश शाकुल का प्रश्न था आपकी ख़ासियत क्या है.(ऐसा पूछने को ब्रीफ़ लेना कहते हैं) टेलर साहब बोले…बस कुछ विशेष नहीं साहब, जो ग्राहक चाहे बना देते हैं. एक बढ़िया सी लाइन दे दें.बोर्ड पर दुकान के नाम के नीचे लिख देंगे.बात सोमवार को हो रही थी और दुकान की शुरूआत होनी थे सप्ताहांत में यानी रविवार के दिन. शुक्रवार हो गया, दिनेश भाई को कुछ न सूझे क्या बताएं..रोज़ टेलर साहब के फ़ोन पर फ़ोन आ रहे…हमारा बोर्ड लगने वाला है आज .आज ही दे दें या रहने दें.दिनेश भाई ने सोचा काम हाथ से गया. उलझन में बिना कुछ तैयारी के शाम को दुकान पर पहुँचे.टेलर साहब से एक फ़टा सा काग़ज़ लिया और बस लिख दिया…
लखनवी टेलर….
आपकी मर्ज़ी के दर्ज़ी…

सोचिये जो काम पाँच दिन में न हुआ , पाँच मिनट में कैसे हो गया ? हुज़ूर !मैंने कहा था न विज्ञापन में भी भाषा या कॉपी कविता की तरह ही लिखी जाती है.
जल्दी मिलते हैं…..जै राम जी की.
चलते चलते आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के बहिष्कार को लेकर बनाया गया अमूल का इश्तेहार ये देखिये...

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीजनवरी 31, 2010

    संजय भाई ,पेशे से जुड़ा़ यह चिट्ठा शुरु किया, हार्दिक बधाई । उम्मीद है विज्ञापनों में छुपे झूठ और अनावश्यक वस्तुओं की जरूरत को स्थापित करने की रणनीति का भी खुलासा करेंगे ।
    बिलकुल नज़र रहेगी । सप्रेम,

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  2. swagat hai blogging me.

    pahli post to dhansoo hai. ekdam mast.

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  3. और हां, अमूल के विज्ञापन तो वैसे भी चुटीले और रोचक होते हैं। यह वाला भी मस्त है।

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  4. यह विषय मुझे भी बहुत पसंद है, इस पर आपके विचार पढ़ने का उत्सुक हूँ।

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  5. ek naye field par apne likhna shuru kiya hai...badhai ....agle article ka intazaar rahega.

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  6. स्वागत है इस अछूते विषय पर लिखे गये पहले पहले ब्लोग का.

    इसी बहाने, एड जगत का एक दस्तावेज़ तैय्यार हो जायेगा. बढियां!!

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  7. yeeeee nya blog dekha aapka acha laga.
    par haan purane wale blogs ka bhi khyal rakhiyega,
    humaksar wahan aaten hain.

    vikaszutshisn.blogspot.com

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नवाज़िश,करम आपका...आप आए !